शब्द नही पुरुष के अपने परिवार के बोझ के दबे दुनिया | हिंदी कविता

"शब्द नही पुरुष के अपने परिवार के बोझ के दबे दुनिया की जिमेवरिया लिया फिरता है , बहुत ही नादानियाँ है इनमे बच्चो के हर त्योहार में नए कपड़े पर खुद दो जोड़ी कपड़े और चप्पल में बिता देता है , जाने किस मिट्टी के बने होते है घर बसाने के लिए घर से निकल जाते है ,,, ©GUru Bindas"

 शब्द नही पुरुष के अपने परिवार के बोझ के दबे दुनिया की जिमेवरिया लिया फिरता है ,
बहुत ही नादानियाँ है इनमे बच्चो के हर त्योहार में नए कपड़े पर खुद दो जोड़ी कपड़े और चप्पल में बिता देता है ,
जाने किस मिट्टी के बने होते है घर बसाने के लिए घर से निकल जाते है ,,,

©GUru Bindas

शब्द नही पुरुष के अपने परिवार के बोझ के दबे दुनिया की जिमेवरिया लिया फिरता है , बहुत ही नादानियाँ है इनमे बच्चो के हर त्योहार में नए कपड़े पर खुद दो जोड़ी कपड़े और चप्पल में बिता देता है , जाने किस मिट्टी के बने होते है घर बसाने के लिए घर से निकल जाते है ,,, ©GUru Bindas

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