White * दर्द कागज़ पर,* * मेरा बिकता रहा,* * मैं | हिंदी Love

"White * दर्द कागज़ पर,* * मेरा बिकता रहा,* * मैं बैचैन थी ,* * रातभर लिखती रही..* *छू रहे थे सब,* * बुलंदियाँ आसमान की,* * मैं सितारों के बीच,* * चाँद की तरह छिपती रही..* * अकड होती तो,* *कब का टूट गई होती,* * मैं थी नाजुक डाली,* * जो सबके आगे झुकती रही..* * बदले यहाँ लोगों ने,* *रंग अपने-अपने ढंग से,* *रंग मेरा भी निखरा पर,* * मैं मेहँदी की तरह पीसती रही..* * जिनको जल्दी थी,* *वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,* * मैं समन्दर से राज* * गहराई के सीखती रही..!!* ©Ahsas83"

 White * दर्द कागज़ पर,*
* मेरा बिकता रहा,*

 * मैं बैचैन थी ,*
* रातभर लिखती रही..*

*छू रहे थे सब,*
* बुलंदियाँ आसमान की,*

* मैं सितारों के बीच,*
* चाँद की तरह छिपती रही..*

* अकड होती तो,*
*कब का टूट गई होती,*

* मैं थी नाजुक डाली,*
* जो सबके आगे झुकती रही..*

* बदले यहाँ लोगों ने,*
*रंग अपने-अपने ढंग से,*

*रंग मेरा भी निखरा पर,*
* मैं मेहँदी की तरह पीसती रही..*

* जिनको जल्दी थी,*
*वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,*

* मैं समन्दर से राज*
* गहराई के सीखती रही..!!*

©Ahsas83

White * दर्द कागज़ पर,* * मेरा बिकता रहा,* * मैं बैचैन थी ,* * रातभर लिखती रही..* *छू रहे थे सब,* * बुलंदियाँ आसमान की,* * मैं सितारों के बीच,* * चाँद की तरह छिपती रही..* * अकड होती तो,* *कब का टूट गई होती,* * मैं थी नाजुक डाली,* * जो सबके आगे झुकती रही..* * बदले यहाँ लोगों ने,* *रंग अपने-अपने ढंग से,* *रंग मेरा भी निखरा पर,* * मैं मेहँदी की तरह पीसती रही..* * जिनको जल्दी थी,* *वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,* * मैं समन्दर से राज* * गहराई के सीखती रही..!!* ©Ahsas83

#good_night #Dard

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