ये आईने पर धुल कैसी है,
या ये कालीत मेरे चेहरे की ही है,
मैं झूठ बोल रही हूं खुद से ही,
या ये ही हकीकत मेरी है,
मंगरू हूं खुद के ख्वाबों की दुनिया में,
या बस ये ही दुनिया मेरी है
ये रास्ते भूल भुलैया का आकार हैं,
या ये बस मेरे मन का ही जाल है,
क्या सच में ये प्रश्नों का जंजाल है,
या उत्तर मेरे सामने हैं ,
जो पढ़कर भी मैं नहीं पढ़ना चाहती ,
हार रही हूं खुद से ही हर बार,
या मैं खुद से ही जीतना नहीं चाहती।।
©TAMANNA KAUSHAL
#आईना Mr Ismail Khan (गुमनाम राइटर) Prince_" अल्फाज़" @Naveen Chauhan @Shubham Mishra Vivek Dixit swatantra