दो चार आँसू ही आते हैं पलकों के किनारे पे, 😎
वर्ना आँखों का समंदर गहरा बहुत है। 🌺😎🙂🌺
वो अश्क़ बन के मेरी चश्म-ए-तर में रहता है, 🌷
अजीब शख़्स है पानी के घर में रहता है। 🌼🌼🌥🌷
अश्क़ ही मेरे दिन हैं अश्क़ ही मेरी रातें, 😲
अश्क़ों में ही घुली हैं वो बीती हुयी बातें। 😲🙌🌺🥺
किसी को बताने से मेरे अश्क़ रुक न पायेंगे, 🌺
मिट जायेगी ज़िन्दगी मगर ग़म धुल न पायेंगे। 🌷😲🌈🙃
क्या कहूँ दीदा-ए-तर ये तो मेरा चेहरा है, 🙏
संग कट जाते हैं बारिश की जहाँ धार गिरे। 💐🥺😊🙌
©NI Sahil
#WoSadak