White महाकुंभ आस्था का जलधि विशाल, दिखता कुम्भ | हिंदी भक्ति

"White महाकुंभ आस्था का जलधि विशाल, दिखता कुम्भ पर्व प्रयागराज। भाव- भक्ति में सराबोर हैं तन-मन, हरि प्रेम में डूबा है प्रयागराज। देश- विदेश,अरण्य - वन प्रांतर, हिमाच्छादित गिरि,गहन गह्वर तल। प्रकट हो रहे योगी - साधक , जो न दिखते कभी सहज इस भूतल अद्भुत रूप,अनेक अखाड़े , नागा बाबा सिद्धपुरूष कहलाते कष्ट दुरूह तन पर जो लेते,भस्मी रमा शीत- घाम भी सहते। पावन कितनी है भारत भूमि, लीलास्थली रही परम ब्रह्म की। पीयूष- घट छलकीं जब बूँदें, अमृत स्वरूप बन सरिता बहती। उज्जैन, हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक, कुम्भ पर्व स्थल अभिराम। प्रति तृतीय वर्ष श्रद्धा- भक्तिमय, उमड़ता जनसैलाब विहंगम। संस्कारित स्थल कुम्भ जीवन मूल्यों का, धर्म- कर्म, नीति- सुनीति का, तन-मन से अनुप्राणित करता , मोह विरक्त शुचि जीवन का। त्रिवेणी की पावन धारा, दुख-दैन्य निवारणी मोक्ष प्रदाता। संगम रज और जल स्पर्श से, मन - मस्तिष्क आनंद समाता वैयक्तिक हित से ऊपर उठकर, सर्वजन हिताय का भाव भर जाता । ज्ञान- भक्ति की अविरल धारा में, अहं ब्रह्मास्मि भाव बह जाता। सारा जग लगता अपना सा, तिरोहित कलुष विचार हो जाता। महाकुंभ की देख विराटता, वसुधैव कुटुंबकम् ज्यों सजीव हो जाता।। ©CHOUDHARY HARDIN KUKNA"

 White महाकुंभ 

आस्था का जलधि विशाल, दिखता कुम्भ  पर्व  प्रयागराज।
भाव- भक्ति में सराबोर  हैं तन-मन,  हरि प्रेम में डूबा है प्रयागराज। 

देश- विदेश,अरण्य - वन प्रांतर, हिमाच्छादित  गिरि,गहन गह्वर  तल।
प्रकट हो रहे योगी - साधक ,
जो  न दिखते कभी सहज इस भूतल

अद्भुत  रूप,अनेक अखाड़े , नागा बाबा सिद्धपुरूष कहलाते
कष्ट दुरूह तन पर जो लेते,भस्मी रमा शीत- घाम भी सहते।

पावन कितनी है भारत भूमि,  लीलास्थली   रही परम ब्रह्म  की।
पीयूष- घट छलकीं  जब बूँदें, अमृत स्वरूप  बन सरिता बहती।

उज्जैन, हरिद्वार,  प्रयागराज, नासिक, कुम्भ पर्व  स्थल अभिराम। 
प्रति तृतीय  वर्ष श्रद्धा- भक्तिमय, उमड़ता जनसैलाब  विहंगम। 

संस्कारित स्थल कुम्भ जीवन मूल्यों का, धर्म- कर्म,  नीति- सुनीति का,
तन-मन से अनुप्राणित  करता , मोह विरक्त शुचि जीवन का।

त्रिवेणी की पावन धारा, दुख-दैन्य निवारणी  मोक्ष प्रदाता।
 संगम रज और  जल स्पर्श  से, 
 मन - मस्तिष्क   आनंद  समाता

वैयक्तिक  हित से ऊपर उठकर, सर्वजन हिताय का भाव भर जाता ।
ज्ञान- भक्ति की अविरल धारा में, अहं ब्रह्मास्मि  भाव बह जाता।

सारा जग लगता अपना सा, तिरोहित  कलुष विचार  हो जाता।
 महाकुंभ  की देख विराटता, वसुधैव  कुटुंबकम्  ज्यों सजीव  हो जाता।।

©CHOUDHARY HARDIN KUKNA

White महाकुंभ आस्था का जलधि विशाल, दिखता कुम्भ पर्व प्रयागराज। भाव- भक्ति में सराबोर हैं तन-मन, हरि प्रेम में डूबा है प्रयागराज। देश- विदेश,अरण्य - वन प्रांतर, हिमाच्छादित गिरि,गहन गह्वर तल। प्रकट हो रहे योगी - साधक , जो न दिखते कभी सहज इस भूतल अद्भुत रूप,अनेक अखाड़े , नागा बाबा सिद्धपुरूष कहलाते कष्ट दुरूह तन पर जो लेते,भस्मी रमा शीत- घाम भी सहते। पावन कितनी है भारत भूमि, लीलास्थली रही परम ब्रह्म की। पीयूष- घट छलकीं जब बूँदें, अमृत स्वरूप बन सरिता बहती। उज्जैन, हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक, कुम्भ पर्व स्थल अभिराम। प्रति तृतीय वर्ष श्रद्धा- भक्तिमय, उमड़ता जनसैलाब विहंगम। संस्कारित स्थल कुम्भ जीवन मूल्यों का, धर्म- कर्म, नीति- सुनीति का, तन-मन से अनुप्राणित करता , मोह विरक्त शुचि जीवन का। त्रिवेणी की पावन धारा, दुख-दैन्य निवारणी मोक्ष प्रदाता। संगम रज और जल स्पर्श से, मन - मस्तिष्क आनंद समाता वैयक्तिक हित से ऊपर उठकर, सर्वजन हिताय का भाव भर जाता । ज्ञान- भक्ति की अविरल धारा में, अहं ब्रह्मास्मि भाव बह जाता। सारा जग लगता अपना सा, तिरोहित कलुष विचार हो जाता। महाकुंभ की देख विराटता, वसुधैव कुटुंबकम् ज्यों सजीव हो जाता।। ©CHOUDHARY HARDIN KUKNA

#महाकुंभ Hinduism भक्ति सागर

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