मेरे हर शब्द के यथार्थ तुम्ही से ,
और भाव का आधार भी तुम ।
कस्मकश सी है साँसों में जिनके,
इंकार भी तुम स्वीकार भी तुम ।
अब ज़ोर नहीं साँसों पर मेरे,
इस जीवन का अधिकार भी तुम ।
तुम से ही दिन ढ़लता मेरा,
खुले आँख सुबह तुम्हीं दिखते हो।
है किताब सरीखी जीवन मेरा जिसके,
हर पन्ने में सिर्फ "तुम" बसते हो।
©Ritika Vijay Shrivastava
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