धरती का श्रृंगार मधुऋतु में फागुन बौराया।वसुंधरा | हिंदी Video

" धरती का श्रृंगार मधुऋतु में फागुन बौराया।वसुंधरा का मन हरसाया।। श्रृंगार अवनि का है भावन,मिलन व्योम भू काअति पावन। रूपवती वसुधा मन मोहे।नाना पट आभूषण सोहे।। चारू पट हैं हरित मनोहर।मधुर गीत बंधूक अधर पर।। वसुधा का श्रृंगार अनोखा। बनी यवनिका लता झरोखा।। राग ह्रदय पलाश बन दहके।सुरभित बयार से मन बहके।। बनी मेखला नदियाँ सारी।मुक्ता लड़ी ओस ने वारी।। बिना मुकुट श्रृंगार अधूरा।यह अभाव करता गिरि पूरा।। षट ऋतुएँ श्रृंगार करातीं।रुचि भूषण से धरणि सजातीं।। सज्जित हो धरती मुसकाती।निज संतति पर नेह जताती।। आशा शुक्ला,शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश"

धरती का श्रृंगार मधुऋतु में फागुन बौराया।वसुंधरा का मन हरसाया।। श्रृंगार अवनि का है भावन,मिलन व्योम भू काअति पावन। रूपवती वसुधा मन मोहे।नाना पट आभूषण सोहे।। चारू पट हैं हरित मनोहर।मधुर गीत बंधूक अधर पर।। वसुधा का श्रृंगार अनोखा। बनी यवनिका लता झरोखा।। राग ह्रदय पलाश बन दहके।सुरभित बयार से मन बहके।। बनी मेखला नदियाँ सारी।मुक्ता लड़ी ओस ने वारी।। बिना मुकुट श्रृंगार अधूरा।यह अभाव करता गिरि पूरा।। षट ऋतुएँ श्रृंगार करातीं।रुचि भूषण से धरणि सजातीं।। सज्जित हो धरती मुसकाती।निज संतति पर नेह जताती।। आशा शुक्ला,शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश

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