जाने कभी गुलाब लगती है जाने कभी शबाब लगती है तेरी | हिंदी Shayari

"जाने कभी गुलाब लगती है जाने कभी शबाब लगती है तेरी आखें ही हमें बहारों का ख्बाब लगती हे मैं पिए रहु या न पिए रहु, लड़खड़ाकर ही चलता हुं क्योकि तेरी गली कि हवा ही मुझे शराब लगती है"

 जाने कभी गुलाब लगती है
जाने कभी शबाब लगती है
तेरी आखें ही हमें बहारों का ख्बाब लगती हे
मैं पिए रहु या न पिए रहु,
लड़खड़ाकर ही चलता हुं
क्योकि तेरी गली कि हवा ही मुझे शराब लगती है

जाने कभी गुलाब लगती है जाने कभी शबाब लगती है तेरी आखें ही हमें बहारों का ख्बाब लगती हे मैं पिए रहु या न पिए रहु, लड़खड़ाकर ही चलता हुं क्योकि तेरी गली कि हवा ही मुझे शराब लगती है

#Pyar #mohabbat
#Hindi

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