जो हूँ वही रहा वही रहूँगा भी जो था नहीं वो दिखना नहीं आया पारस था मैं पत्थर समझते रहे लोग अपनी पहचान बताने को घिसना नहीं आया पुरातत्व का कोई मर्तबान रहा जैसे इश्क़ के बाजार में बिकना नहीं आया एक गम के बोझ तले दम तोड़ दूँ
फकीरों की तरह टिकना नहीं आया मैं एक कुशल पार्थ रहा जिंदगी का फिर भी ठोकरों से सीखना नहीं आया यूँ तो बहुत से मुद्दे हैं जहां में 'साहेब' इश्क़ के सिवा कुछ और लिखना नहीं आया
©Pawan Dvivedi
#sadak प्रेम