काश! उस अधूरे ख़्वाब को मै लिख पाऊं
तू था मेरे कितना करीब ये बयां कर पाऊं
ये लफ्ज़ कहा समेट पाएंगे वो एहसास
जिन जज़्बातों में, मै बस ठहरना चाहूं।
काश! फ़िर नींद आए,और वो ख़्वाब भी
इक बार फिर से मैं, ख़्वाब पूरा जी जाऊं।
©Rooh_Lost_Soul
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