मेरी कमरे के बाहर जो छज्जा है वहां अक्सर मैं इन्हें बैठे हुए देखती हूं, जब यह अक्सर कभी झगड़ते हैं , कभी सोच मारते हैं एक दूसरे में कभी पंख फड़फड़ाते हैं, समझ नहीं आता कि उनकी भाषा क्या है ऐसा वह क्यों करते हैं लेकिन थोड़ी देर बाद फिर दोबारा से शांत बैठ जाते हैं। कभी साथ बैठते हैं तो कभी अलग-अलग कोनों में बैठ जाते हैं पर कभी-कभी बहुत प्यारी लगते हैं ।और मन करता है कि बस इस रूहानी मौसम में इन्हें देखते रहूं इन्हें उड़ता हुआ देखकर कभी-कभी मुझे भी पंख लगने जैसे सपने आते हैं जो मैं खुली आंखों से देख लेती हूं , और मन करता है कि जैसे मैं बचपन में सोचा करती थी कि शायद इंसानों के भी पंख होते तो उन्हें जरूरत नहीं पड़ती कि इतने लंबे-लंबे किलोमीटर को तय करने के लिए ईंधन और गाड़ी की , बस पंख लगे हैं छत से छलांग लगाओ और पंख खुल जाएंगे और बस उड़ान भर दो अक्सर हम ऐसा बचपन में सभी सोचा करते थे, जब हम कार्टूंस ड्रैगन टेल्स और पावरपफ गर्ल जैसे कार्टून देखा करते थे तो लगता था कि काश हमारी भी पंख होते या शक्ति होती तो हमें भी किसी की जरूरत नहीं होती और बस उड़ते रहते इस खुले आसमान में और जब जहां मन करता वहां पहुंच जाते।
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