ये उलझने, ये भागदौड़ अब सुकून कहाँ पाते हैं छोड़ दो | हिंदी विचार

"ये उलझने, ये भागदौड़ अब सुकून कहाँ पाते हैं छोड़ दो ये बस्तियाँ चलो जंगल उगाते है। ©vikas singh patel"

 ये उलझने, ये भागदौड़
अब सुकून कहाँ पाते हैं
छोड़ दो ये बस्तियाँ
चलो जंगल उगाते है।

©vikas singh patel

ये उलझने, ये भागदौड़ अब सुकून कहाँ पाते हैं छोड़ दो ये बस्तियाँ चलो जंगल उगाते है। ©vikas singh patel

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