प्यास दरिया की निगाहों से छुपा रक्खी है
एक बादल से बड़ी आस लगा रखी है!
तेरी आँखों की कशिश कैसे तुझे समझाऊँ
इन चरागों ने मेरी नींद उड़ा रखी है !
क्यूँ न आ जाए महकने का हुनर लफ़्ज़ों को
तेरी चिट्ठी जो किताबों में छुपा रखी है !
तेरी बातों को छुपाना नहीं आता मुझको
तू ने ख़ुश्बू मेरे लहजे में बसा रखी है !!
विरांत