जो चमन में खिल ना सके,
उसी गुलशन का फूल हूँ मैं
जो कुछ हूँ बहार का ,
टूटी कली की भूल हूँ मैं,
जिसने डाल से भुला दिया,
उस कली का फूल हूँ मैं,
जिसने मोहब्बत की,
हसरतों को मिटा दिया,
उस हसीन हसरतौं का बादल हूँ मैं,
उस उजियारे की शाम की भूल हूँ मैं,
जो कबूल ना हो सकीं,
हुस्न -ए- जाम में,
आँसू समझ के क्यूँ तुमने,
गिरा दिया महफिल की शाम में,
मेरी खता थी शाम में एक दिन,
तेरी पलकों के साये में सो गया,
जो मुफ्त में ख्वाबों में कट गयीं ,
वो मोती पलकों से जा गिरा धूल में,
जो बाग में ना खिल सका,
वो टूटा चमन का फूल हूँ मैं,
मैं जो कुछ हूँ बहार का,
टूटी कली की भूल हूँ मैं,
मैं भावनाओं के समन्दर में,
अधखिली सीप हूँ,
वो आँख से झरा मोती हूं मैं,
जो कर्ज चुका रहा हूँ मैं,
आँसू समझ के पलकों से तुमने,
माटी में मिला दिया मुझे,
में बेगाना हूँ उस फूल का जो,
अपने ही बीज से लजा रहा हूँ मैं,
जेल का कर्ज चुका रहा हूँ मैं,
टूटी छत का जलता चराग हूँ मैं ,
जो पलकों की छाया में,
मोती सा माटी में गिर गया हूँ मैं,
अब बचा लूँ अपने दामन को,
वरना मोती सा बिखर जाऊँगा मैं,
देख ली तेरी वफा,
अब ख्वाब लेकर ना आऊँगा मैं
©Subhagini
#Love जो चमन में खिल ना सके,