हर बिखरे जज़्बात को समेट रही हूँ, हाँ थोड़ी थोड़ी मैं | हिंदी कविता

"हर बिखरे जज़्बात को समेट रही हूँ, हाँ थोड़ी थोड़ी मैं भी बदल रही हूं, मुस्कान लबों पे थोड़ी हसीन रखती हूँ, हाँ मैं भी फरेबों की बस्ती में घुल रही हूं, आह को वाह में तब्दील करना सिख रही हूँ, हाँ खुद को थोड़ा काबिल कर रही हूँ, जज्बातों और ज़िंदगी से कम झगड़ रही हूँ, मैं भी इन कायर की बस्ती का हिस्सा हो रही हूँ। -मलंग ©Nensi Suchak 'मलंग'"

 हर बिखरे जज़्बात को समेट रही हूँ,
हाँ थोड़ी थोड़ी मैं भी बदल रही हूं,

मुस्कान लबों पे थोड़ी हसीन रखती हूँ,
हाँ मैं भी फरेबों की बस्ती में घुल रही हूं,

आह को वाह में तब्दील करना सिख रही हूँ,
हाँ खुद को थोड़ा काबिल कर रही हूँ,

जज्बातों और ज़िंदगी से कम झगड़ रही हूँ,
मैं भी इन कायर की बस्ती का हिस्सा हो रही हूँ।
                                                         -मलंग

©Nensi Suchak 'मलंग'

हर बिखरे जज़्बात को समेट रही हूँ, हाँ थोड़ी थोड़ी मैं भी बदल रही हूं, मुस्कान लबों पे थोड़ी हसीन रखती हूँ, हाँ मैं भी फरेबों की बस्ती में घुल रही हूं, आह को वाह में तब्दील करना सिख रही हूँ, हाँ खुद को थोड़ा काबिल कर रही हूँ, जज्बातों और ज़िंदगी से कम झगड़ रही हूँ, मैं भी इन कायर की बस्ती का हिस्सा हो रही हूँ। -मलंग ©Nensi Suchak 'मलंग'

#NationalSimplicityDay

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