बड़े भाई साहब बहुत पढ़ते हैं और छोटे भाई से भी वही अपेक्षा रखते हैं। छोटा भाई खेल में मस्त और पढ़ने से कोसों दूर भागता है। बावदूद इसके बड़े भाई साहब फेल होते जाते हैं और छोटा भाई पास! एक ऐसी कहानी जो सन् १९३६ में लिखी गई पर आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। 'पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे बनोगे ख़राब' सहित रट्टामार, कठोर अनुशासन और सुंदर लिखावट के मिथक को तोड़, खेल के महत्त्व को रेखांकित करती है प्रेमचंद की यह सुन्दर कहानी ‘बड़े भाई साहब’।
©CHHOTE BHAI BADE BHAI
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