बरसात अबकी जब तुम आना ,तो,
मेरा बचपन साथ ले आना,
"छपाक" से तरबतर बचपन,
ज़िम्मेदारियों की परिभाषा से मुक्त,
किसी कॉपी के पन्नो के लगातार फटने की आवाज़
और उन पन्नो पर मंझे हुए कलाकार सी,
चलती उंगलिया और उनसे तैयार होती ,
सपनों की सुनहरी कश्तियाँ,
छत की नाली की झांकती आंखों पर,
अपने ही किसी नन्हे कपड़े की पट्टी बांधकर,
पूरे छत को स्वीमिंग पूल में बदल कर,
एक विजेता सा एहसास होना,और,
फिर डुबकियां लगाता ,खिलखिलाता बचपन,
जाने कहाँ छुप गए वो दिन,कहीं नजर नही आते,
"बरसात"अबकी जब तुम आना,तो,
मेरा बचपन साथ ले आना।
©sunita sonawrites
#बचपन और बारिश#