मैं थक गयी हूँ तुम्हें समझा कर.. बस अब और नहीं...

"मैं थक गयी हूँ तुम्हें समझा कर.. बस अब और नहीं... चली जाउंगी यहाँ से कहीं दूर ..बहुत दूर.. इंसानों की बस्ती में रहना दुश्वार है मेरा शायद मैं इंसान ही नहीं... नहीं बन पाई मैं व्यवहारिता के पुतलो में से एक नहीं ओढ़ पाई चेहरे पर छद्दम आवरण ढूंढना चाहती हूँ कोई ऐसी बस्ती जिस में मुझ-से लोग बसते हों.. ©Neelam s"

 मैं थक गयी हूँ 
तुम्हें समझा कर..
बस अब और नहीं...
चली जाउंगी यहाँ से 
कहीं दूर ..बहुत दूर..
इंसानों की बस्ती में 
रहना दुश्वार है मेरा
शायद मैं इंसान ही नहीं... 
नहीं बन पाई मैं 
व्यवहारिता के पुतलो में से एक
नहीं ओढ़ पाई
चेहरे पर छद्दम आवरण
ढूंढना चाहती हूँ 
कोई ऐसी बस्ती
जिस में मुझ-से 
लोग बसते हों..

©Neelam s

मैं थक गयी हूँ तुम्हें समझा कर.. बस अब और नहीं... चली जाउंगी यहाँ से कहीं दूर ..बहुत दूर.. इंसानों की बस्ती में रहना दुश्वार है मेरा शायद मैं इंसान ही नहीं... नहीं बन पाई मैं व्यवहारिता के पुतलो में से एक नहीं ओढ़ पाई चेहरे पर छद्दम आवरण ढूंढना चाहती हूँ कोई ऐसी बस्ती जिस में मुझ-से लोग बसते हों.. ©Neelam s

#poetryunplugged
#चली_जाऊंगी_बहुत_दूर

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