तुम्हारे सपनों को अपने बनियान के छेद में सजा लेता हैं वो,
तुम्हारे रास्तों के काटों को खुद के फटे जूतों में समा लेता हैं वो,
तुम्हारे दो वक्त की रोटी के लिए पसीना पानी सा बहाता है वो,
तुम्हारे सपनों को खरीदने में खुद बिक जाता है वो,
बेशक तुम्हारे चोट पर मलहम मां लगती है, पर उस मलहम को खरीदने में ना जाने कितनी चोटे खाता हैं वो,
मां का क्या हैं वो तो सबके सामने रो लेती हैं,
क्या बाप को किसी ने रोते देखा है,
दिल होते हुए भी पत्थर बने रहता हैं वो,
ज़माना तो बस यही कहता हैं,
बाप कहा किसी का रोता है,
जब अंधेरी रातों को सब सो जाया करते हैं,
तभी वो जागा करता हैं,
बच्चों की पढाई, बेटी की शादी, बूढ़े बाप दवाई,
सबका हिसाब लगाया करता हैं,
सबके हिस्से की कमाई वो अकेला कमाया करता हैं,
बाते उसकी तो कड़वी हैं, मन उसका बच्चों सा सच्चा हैं,
वो बाप तुम्हारा अच्छा है, वो बाप तुम्हारा सच्चा है,
©Siddharth
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