महफ़िल बड़ा अजब है खेल तेरा ए इश्क़ अकेले दिन भी ऐस | हिंदी शायरी

"महफ़िल बड़ा अजब है खेल तेरा ए इश्क़ अकेले दिन भी ऐसे जैसे रात काली होती है ज़रा बैठो महफ़िल में कहीं तो खुद ही के ज़ख्म पर बज रही ताली होती है ©Neeraj Sharma"

 महफ़िल बड़ा अजब है खेल तेरा
ए इश्क़
अकेले दिन भी ऐसे जैसे रात काली होती है
ज़रा बैठो महफ़िल में कहीं तो खुद ही के ज़ख्म पर बज रही ताली होती है

©Neeraj Sharma

महफ़िल बड़ा अजब है खेल तेरा ए इश्क़ अकेले दिन भी ऐसे जैसे रात काली होती है ज़रा बैठो महफ़िल में कहीं तो खुद ही के ज़ख्म पर बज रही ताली होती है ©Neeraj Sharma

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