पूछूंगी ये कभी वक़्त मिले जो तुम्हें ,
गर मैं रूठी थी तो तुमने मनाया क्यों नहीं?
असर क्या हि होता मेरे अश्कों का ,
पर मैं रोईथी तो तुमने हसाया क्यों नहीं?
हर बार बताती रही जो चाहे मांगलो ,
बारी आयी हक़ जताने की तुमने हक़ जताया क्यों नहीं?
क्या तुम्हें मेरे भीतर की थर्थराहट महसूस नहीं हुई ,
जो हुई , तो गले से लगाया क्यों नहीं?
तुमतो कहते थे सुलझा दूंगा यु हीं तुम्हें,
मैं उलझ रही थी तो तुमने सुलझाया क्यों नहीं ?
और दूर दूर से रहने लगे हो ,
क्या मन भर गया है अब मुझसे ?
जो भर गया तो बताया क्यों नहीं?
©आँचल
क्यों नहीं ❓
Pyare ji Prashant Shakun "कातिब" "सीमा"अमन सिंह @An_se_Anshuman @Ana pandey