मेरे अंदर दर्द का एक सैलाब बहता है जो में किसी को | हिंदी कविता

"मेरे अंदर दर्द का एक सैलाब बहता है जो में किसी को दिखाता नहीं, मैं खुश हूं बाहर से क्योंकि मेरे अंदर का सैलाब समेत ले वो शख्स है ही नहीं। मुझे पता नहीं, पता अपना भी आजकल लोग मुझसे मेरा हाल पूछते हैं, फिरता हूं बंजारा सा क्यों मैं? इसकी वजह पूछते हैं। महफिलों मैं शराब और सवालों की झड़ी लगी है, मतलब की ये दुनिया मेरे टूटे दिल के टुकड़ों को चकनाचूर करने में लगी है। ©Gunjan Rajput"

 मेरे अंदर दर्द का एक सैलाब बहता है 
जो में किसी को दिखाता नहीं,

मैं खुश हूं बाहर से क्योंकि मेरे अंदर 
का सैलाब समेत ले वो शख्स है ही नहीं।

मुझे पता नहीं, पता अपना भी आजकल 
लोग मुझसे मेरा हाल पूछते हैं,

फिरता हूं बंजारा सा क्यों मैं? इसकी
 वजह पूछते हैं।

महफिलों मैं शराब और सवालों की 
झड़ी लगी है,

मतलब की ये दुनिया मेरे टूटे दिल के 
टुकड़ों को चकनाचूर करने में लगी है।

©Gunjan Rajput

मेरे अंदर दर्द का एक सैलाब बहता है जो में किसी को दिखाता नहीं, मैं खुश हूं बाहर से क्योंकि मेरे अंदर का सैलाब समेत ले वो शख्स है ही नहीं। मुझे पता नहीं, पता अपना भी आजकल लोग मुझसे मेरा हाल पूछते हैं, फिरता हूं बंजारा सा क्यों मैं? इसकी वजह पूछते हैं। महफिलों मैं शराब और सवालों की झड़ी लगी है, मतलब की ये दुनिया मेरे टूटे दिल के टुकड़ों को चकनाचूर करने में लगी है। ©Gunjan Rajput

मेरे अंदर दर्द का एक सैलाब बहता है
जो में किसी को दिखाता नहीं,

मैं खुश हूं बाहर से क्योंकि मेरे अंदर
का सैलाब समेत ले वो शख्स है ही नहीं।

मुझे पता नहीं, पता अपना भी आजकल
लोग मुझसे मेरा हाल पूछते हैं,

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