न वो हमको मयस्सर हुआ न ही दिल से जुदा हुआ ग़ुलाब ज | हिंदी शायरी

"न वो हमको मयस्सर हुआ न ही दिल से जुदा हुआ ग़ुलाब जो निकला बाग से किसे पता क्या हुआ ©Kamal Kant"

 न वो हमको मयस्सर हुआ न ही दिल से जुदा हुआ
 ग़ुलाब जो निकला बाग से किसे पता क्या हुआ

©Kamal Kant

न वो हमको मयस्सर हुआ न ही दिल से जुदा हुआ ग़ुलाब जो निकला बाग से किसे पता क्या हुआ ©Kamal Kant

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