सोचा था यार होंगे अपने और होगी शराब भी,
अब तो बस प्यास हासिल है, और है आब भीl
कैसे कह दूं की मैं अकेला हो गया हूं भीड़ में,
अब भी तो प्यार बांकी है और है हिसाब भी।
देखते हैं मुझे तो पहचानते भी हैं भूलते नही,
मैं आंखों से गिरा ख़्वाब हूं और दस्तियाब भी।
न चाहते हुए उनको भी मुझे, चाहना तो है,
जैसे मुझे चाहना सवाब है, और है अज़ाब भी।
- प्रशान्त निगम
©Prashant Nigam
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