नए साल पे चलो अब इक नयी शुरुआत करते हैं,
रंजिशों–गम को भूल कर मुस्कुराकर बात करते है.
ताक पर रख कर भेदभाव नयी आगाज करते हैं.
कुछ आप भूल जाओ कुछ हम आत्मसात करते है.
गुमनामियों में खो रहे जो यार-दोस्त व रिश्ते-नाते,
मोबाइल को एक कोने रख उनसे मुलाकात करते है.
जनता तिल- तिल कर झेल रही गरीबी का दंश,
मिलावट, भ्रस्टाचार, आतंकवाद पर आघात करते है.
उखाड़ कर फ़ेंक दो दकियानूसी रीती-रिवाजों को,
समाज को कुरीतियों पाखंडो से निजात करते है.
दुनिया बाँहे फैलाकर कर रही स्वागत भारत का ,
विश्व गुरु का तमगा फिर से चलो विख्यात करते हैं.
छोड़ कर वैमनस्यता, दुराभाव, अनैतिकता, 'कुमार'
सकारात्मकता औ आशाओं की नयी प्रभात करते हैं.
-कुमार भास्कर
©Kumar Bhaskar
नई शुरुआत
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