खड़े खड़े क्या सोचता है ज़िन्दगी में चलते जाना है,
चाहे कदम लड़खड़ाए आगे बढ़ते जाना है ,
राहों में आएंगे कांटे अनेक उनको भी तुझे अपनाना है ,
कांटो भरे रास्तो से गुज़र कर तुझे तेरा मुकाम पाना है ,
हंसते मुस्कुराते हुए इस ज़िन्दगी को बिताना है,
ज़मीन पे रहके आसमान की ऊंचाइयों को छू जाना है,
अपने मिलेंगे हर राह में तुझे पर कोई न साथ निभाना है,
संघर्ष भरे इस जीवन का मूल्य तुझे अकेले ही चुकाना है ,
हाथों की लकीरों पर क्या भरोसा करना तुझे तेरा नसीब खुद बनाना है ।
खड़े खड़े क्या सोचता है ज़िन्दगी में चलते जाना है,
चलते जाना है ,चलते जाना है |
©Udit Vashistha
#MereKhayaal