मेरी चाहत का सिलसिला कुछ ऐसा चलता रहा वो गैर इंसान | हिंदी Poetry

"मेरी चाहत का सिलसिला कुछ ऐसा चलता रहा वो गैर इंसान मुझसे मुझमें घुलता रहा, न उसे ख़बर हुई मेरी बर्बादी की हर्ष न उसे ख़बर हुई मेरी बर्बादी की न उसकी फ़िदरत का मुझे जायज़ा मिला वो किसी और की बाहों की गर्मी,मुझे मेरी तपिश सी लगी वो किसी और के बग़ीचे का फूल गुलशन रहा मै बेगाना बेफिजूली का भंवरा भटकता रहा,वो किसी और के बाग़ का सुंदर फूल रहा rj harsh sharma ©RJ VAIRAGYA"

 मेरी चाहत का सिलसिला कुछ ऐसा चलता रहा वो गैर इंसान मुझसे मुझमें घुलता रहा, न उसे ख़बर हुई मेरी बर्बादी की हर्ष न उसे ख़बर हुई मेरी बर्बादी की न उसकी फ़िदरत का मुझे जायज़ा मिला 
वो किसी और की बाहों की गर्मी,मुझे मेरी तपिश सी लगी वो किसी और के बग़ीचे का फूल गुलशन रहा मै बेगाना बेफिजूली का भंवरा भटकता रहा,वो किसी और के बाग़ का सुंदर फूल रहा 
rj harsh sharma

©RJ VAIRAGYA

मेरी चाहत का सिलसिला कुछ ऐसा चलता रहा वो गैर इंसान मुझसे मुझमें घुलता रहा, न उसे ख़बर हुई मेरी बर्बादी की हर्ष न उसे ख़बर हुई मेरी बर्बादी की न उसकी फ़िदरत का मुझे जायज़ा मिला वो किसी और की बाहों की गर्मी,मुझे मेरी तपिश सी लगी वो किसी और के बग़ीचे का फूल गुलशन रहा मै बेगाना बेफिजूली का भंवरा भटकता रहा,वो किसी और के बाग़ का सुंदर फूल रहा rj harsh sharma ©RJ VAIRAGYA

मेरी चाहत का सिलसिला कुछ ऐसा चलता रहा वो गैर इंसान मुझसे मुझमें घुलता रहा, न उसे ख़बर हुई मेरी बर्बादी की हर्ष न उसे ख़बर हुई मेरी बर्बादी की न उसकी फ़िदरत का मुझे जायज़ा मिला
वो किसी और की बाहों की गर्मी,मुझे मेरी तपिश सी लगी वो किसी और के बग़ीचे का फूल गुलशन रहा मै बेगाना बेफिजूली का भंवरा भटकता रहा,वो किसी और के बाग़ का सुंदर फूल रहा
rj harsh sharma
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