"खिदमत" जिंदगी की खिदमत कैसे करूँ, मैं मुसाफिर ब | हिंदी Po

" "खिदमत" जिंदगी की खिदमत कैसे करूँ, मैं मुसाफिर बन भटक रहा हूँ। शतरंज से रिश्ते हर बाजी हारा हूँ, मैं पग-पग ही संघर्ष कर रहा हूँ। जहान में एक फूल मुस्कुराए, मैं इसलिए पतझड़ बन रहा हूँ। जिंदगी की खिदमत कैसे करूँ, मैं अश्रु अर्णव बारिश बन रहा हूँ। ये नदियाँ कभी नमकीन न हो, मैं इसलिए खारिद बन रहा हूँ। ©Tanu Singh "

"खिदमत" जिंदगी की खिदमत कैसे करूँ, मैं मुसाफिर बन भटक रहा हूँ। शतरंज से रिश्ते हर बाजी हारा हूँ, मैं पग-पग ही संघर्ष कर रहा हूँ। जहान में एक फूल मुस्कुराए, मैं इसलिए पतझड़ बन रहा हूँ। जिंदगी की खिदमत कैसे करूँ, मैं अश्रु अर्णव बारिश बन रहा हूँ। ये नदियाँ कभी नमकीन न हो, मैं इसलिए खारिद बन रहा हूँ। ©Tanu Singh

जिंदगी की खिदमत#रचना#तनु सिंह

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