महकी महकी सी फिजायें है ठंडी ठंडी रातें ।
आंखों में नींद हैं ख्यालों में आप हों,
बहुत याद आते हैं वो गुजरे हुए सुनहरी रातें।।
क्यों छोड़ कर चले गयी तन्हाई में अकेली,
तेरे लिए आज भी तड़प-तड़कर कर रोते हैं
मुझे भी साथ ले कर जाती वो मेरे मनचली।।
तेरे बिना अधूरा हो गया हूं
अब दर्द,गम से बितता जा रहा ये दिन और हैं रातें ।।
©Ghanshyam Ratre