White "कदम से कदम मिलाकर कर चलती हूँ।।
संग सूरज के उगती हूँ, चाँद संग ढलती हूँ
बुनियादें रखती हूँ, कर्म हमारी अस्मिता।
स्याह रात में, मैं दीपक संग जलती हूँ।
खुशकिस्मत हैं वो, जीवन में हरियाली है
मैं तो पतझड़ में पुष्प बन खिलती हूँ।
संग हमारे रहते हैं वो, हमको पहचाने न।
किस्मत में नहीं उनकी यादों में पलती हूँ।
नाकामी को धूल चटाना मुझको आता है।
मिटाने की चाहत रखते उनको खलती हूँ।
नित्य नवीन उडानें भरती नभ को छूने मचलती
बाँध पैर कर्तव्य बेड़ियाँ, स्वयं को ही छलती हूँ।।"
अम्बिका झा ✍️
©Ambika Jha
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