White मुखौटे देखे लाखों मैंने चेहरा दिखना बाकी है | हिंदी कविता

"White मुखौटे देखे लाखों मैंने चेहरा दिखना बाकी है हर डाल पर हैं कर्कश कौवे कोयल का दिखना बाकी है है व्याप्त दर्प का अहंकार आलोक शील का बाकी है है डगर अनैतिक भीड़ भरी सद्मार्ग की पंक्ति बाकी है चाटुकारी - युक्त है जिव्हा मगर वाणी यथार्थ की बाकी है सही को कहे सही, गलत को गलत दृढ़ संकल्पित इस समाज में, हो जाना तो बाकी है थोड़ी जो कलम ये चलाई है इस पर ही भृकुटी तन गई कुछ अफसाने अभी लिखे हैं काफी कुछ लिखना बाकी है ©गजेंद्र 'गौरव'"

 White मुखौटे देखे लाखों मैंने 
चेहरा दिखना बाकी है 
हर डाल पर हैं कर्कश कौवे 
कोयल का दिखना बाकी है 
है व्याप्त दर्प का अहंकार 
आलोक शील का बाकी है 
है डगर अनैतिक भीड़ भरी 
सद्मार्ग की पंक्ति बाकी है 
चाटुकारी - युक्त है जिव्हा मगर 
वाणी यथार्थ की बाकी है 
सही को कहे सही, गलत को गलत 
दृढ़ संकल्पित इस समाज में, हो जाना तो बाकी है 
थोड़ी जो कलम ये चलाई है 
इस पर ही भृकुटी तन गई 
कुछ अफसाने अभी लिखे हैं 
काफी कुछ लिखना बाकी है

©गजेंद्र 'गौरव'

White मुखौटे देखे लाखों मैंने चेहरा दिखना बाकी है हर डाल पर हैं कर्कश कौवे कोयल का दिखना बाकी है है व्याप्त दर्प का अहंकार आलोक शील का बाकी है है डगर अनैतिक भीड़ भरी सद्मार्ग की पंक्ति बाकी है चाटुकारी - युक्त है जिव्हा मगर वाणी यथार्थ की बाकी है सही को कहे सही, गलत को गलत दृढ़ संकल्पित इस समाज में, हो जाना तो बाकी है थोड़ी जो कलम ये चलाई है इस पर ही भृकुटी तन गई कुछ अफसाने अभी लिखे हैं काफी कुछ लिखना बाकी है ©गजेंद्र 'गौरव'

#good_night #rebel

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