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प्रेम एक स्तर पर खामोश सा रहा गया ।।
जों देखा सपना " वों सपना हीं रेह गया ।।
यूँ तों मेरे शब्दों से बहुत कुछ लिख सकता हूँ ।।
पर जों लिखना था वों अधूरा था "अधूरा हीं रेह गया ।।
मैं कहुँ तुम बिन कुछ अच्छा नहीं हैं ।।
यहाँ दिखते हैं सब सच्चे पर कोई सच्चा नहीं हैं ।।
चेहरे के पीछे सबके एक अलग चेहरा हैं ।।
इश्क़ तों यहाँ सबका है सच्चा पर कोई सच्चा नहीं हैँ ...!
©विपिन सेवक "
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