मर्ज खुद्दारी है मुझे रहमतों की दुआओ ने लूटा है
वो चराग हूँ जिसको इन तेज हवाओं ने लूटा है
हाथ मे खंजर आंखों में वही पहला वाला प्यार
मैं कत्ल नही हुआ कातिल की अदाओं ने लूटा है
करवाते रहे हैं जो मुझसे लाख मन्नते उम्र भर
हाँ मुझे उन्ही जमाने के झूठे खुदाओं ने लूटा है
उसका शहर वही मुंसिफ रिशु जीत कैसे पाता यारों
खुद जुर्म कबूले गए मुझे मेरे अपने गवाहों ने लूटा है
Rishansh
©Dr Navneet Sharma
#नवश