संस्कार से रहित सन्तती, बहुत अलग है उनका व्यवह | हिंदी कविता

"संस्कार से रहित सन्तती, बहुत अलग है उनका व्यवहार। मातृ पितृ को वृद्धाश्रम छोड़े, वो आदत से लगते लाचार।। ©Tripura kaushal"

 संस्कार से रहित सन्तती,
    बहुत अलग है उनका व्यवहार।
मातृ पितृ को वृद्धाश्रम छोड़े,
 वो आदत से लगते लाचार।।

©Tripura kaushal

संस्कार से रहित सन्तती, बहुत अलग है उनका व्यवहार। मातृ पितृ को वृद्धाश्रम छोड़े, वो आदत से लगते लाचार।। ©Tripura kaushal

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