ग़ज़ल :-
देख कर ख़ुद को छिपाता है कोई
अपने ख़ुद अश्क़ बहाता है कोई
दिल की आवाज़ सुनाता है कोई ।
वज़्म में अपनी बुलाता है कोई ।।
नाम कोई भी नही रिश्ते का
फिर भी रिश्तों को निभाता है कोई
इस तरह चाहता अब है मुझको
सारी दुनिया को बताता है कोई
सारे इल्ज़ाम हमारे लेकर
मुझको बेदाग़ बताता है कोई
हो न जाऊँ खुशी से मैं पागल
जान ऐसे भी लुटाता है कोई
अब तो रहता नशें में हूँ हरपल
ज़ाम आँखों से पिलाता है कोई
रात कटती न प्रखर करवट में
याद ऐसे मुझे आता है कोई
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :-
देख कर ख़ुद को छिपाता है कोई
अपने ख़ुद अश्क़ बहाता है कोई
दिल की आवाज़ सुनाता है कोई ।
वज़्म में अपनी बुलाता है कोई ।।
नाम कोई भी नही रिश्ते का
फिर भी रिश्तों को निभाता है कोई
इस तरह चाहता अब है मुझको