पाने की कोशिशें तो कीं पाया नहीं गया
हमसे वो शख़्स अपना बनाया नहीं गया
जब तक के ज़ख़्म काँटों से खाया नहीं गया
फूलों की बज़्म में मैं बुलाया नहीं गया
इंकार एक बार किसी दर से जब हुआ
मैं क्या वहाँ पे फिर मेरा साया नहीं गया
वो फूल था तो फूल को सर पे सजाया है
मैं बोझ था तो बोझ उठाया नहीं गया
मेरा तो पेट भर दिया गाली ने आपकी
सो आज मुझसे खाना भी खाया नहीं गया
कुछ इसलिए भी ज़िन्दगी तारीकी में कटी
हम से चराग़ उठ के जलाया नहीं गया
©Rehan Mirza
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