बाज़ार में घूमते घूमते जब मेरी नज़र उस खिलौने पर पड़ी, कुछ पल के लिए मानो आंखें दंग सी रही
पलभर को सोचा क्यूं ना हाथ लगा मैं देख लूं
फिर याद आया यार, तेरे बस में नहीं
क्यूं ना नज़रें ही फेर लूं
दिल को कुछ यूं बहला लिया
खिलौने को नज़रों से उतार लिया
जैसे हमेशा के लिए हो भूला दिया
मगर सच कहूं आंखों ने सपना सा सजा लिया
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