White
तिनका तिनका घर घरौंदा
टूटा चूल्हा बर्तन औंधा
बालू में से कंकर बीना
ईंधन बना पत्तों का झीना
फर्जी फर्जी दाल पकाई
बच्चों को जब तक नींद ना आई
लेकिन मां को भय था भोर का
था सवाल बस चंद कोर का
ब्याज ढले तो पो भी फटती
तब जाके कहीं मूल से लड़ती
कभी सीधी कभी उल्टी पड़ती
बार बार करवटे बदलती
झूठे सपनों में रोटी आई
लेकिन सच्ची नींद ना आई
भूख थी ज़्यादा पेट था ख़ाली
मजबूरी में फिर बालू खाली
भीतर पूरा रेगिस्तान हो गया
जीवन ही वीरान हो गया
ना पत्थर थी ना लक्कड़ थी
अब चेतना बिल्कुल जड़ थी
बच्चों से वज्रपात सहे ना
काश कभी ये भोर भए ना
©Abd
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