जब मैं बनू मुसाफ़िर
मंज़िल तुम मेरी बनना
जब मैं बनू साग़र तो
तुम दरिया बन मुझमे उतरना।
पलकों का क्या है, आज़ खुली है
कल बंद हो जायेगी।
शरीर तो मिटी की सुराही
कल टूट कर बिखर जायेगी।
ज़िस्म से नहीं प्रिये, मेरी रूह से तुम मिलना ।
जब बनू मैं मुसाफ़िर ,
मंज़िल तुम मेरी बनाना।
जब मैं बनू साग़र तो
तुम दरिया बन मुझमें उतरना।
#मk
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