चहकती रहती है इधर से उधर, जैसे हो किसी महलों की पर | हिंदी Poetry

"चहकती रहती है इधर से उधर, जैसे हो किसी महलों की परी। सूझती रहती हैं शरारत और मस्ती, शैतानी पिटारे से जैसे भरी हुई, ख़ुशी भी गुदगुदाती रहती हैं इस कदर, गुल्लक हो जैसे उसके पास खुशियों से भरी। ©Priyanka Kashyap"

 चहकती रहती है इधर से उधर,
जैसे हो किसी महलों की परी। 
सूझती रहती हैं शरारत और मस्ती,
शैतानी पिटारे से जैसे भरी हुई, 
ख़ुशी भी गुदगुदाती रहती हैं इस कदर,
गुल्लक हो जैसे उसके पास खुशियों से भरी।

©Priyanka Kashyap

चहकती रहती है इधर से उधर, जैसे हो किसी महलों की परी। सूझती रहती हैं शरारत और मस्ती, शैतानी पिटारे से जैसे भरी हुई, ख़ुशी भी गुदगुदाती रहती हैं इस कदर, गुल्लक हो जैसे उसके पास खुशियों से भरी। ©Priyanka Kashyap

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