जायज़ है इश्क़ में दिल का टूट जाना भी,
चाँद का आसमाँ से कभी रूठ जाना भी।
तुझे पता ही नहीं तू क्या था मेरे लिए,
हुआ ही नहीं मेरा ख़ुद से रूठ जाना भी।
सब ने देखा है मोती टूट के बिखर गए,
उस दिन हुआ एक धागे का टूट जाना भी।
जा मैं नहीं कहता तू ख़ुश हो जहाँ भी हो,
तूने देखा नहीं मेरी दुआ का रूठ जाना भी।
एक आईना था कभी इस कमरे में मेरे,
उसे देख हुआ पत्थर का लौट जाना भी।— % &