White ।।मैं शून्य हो जाना चाहता हूँ।। ये बांधना | हिंदी विचार

"White ।।मैं शून्य हो जाना चाहता हूँ।। ये बांधना चाहते हैं मुझे, सभ्यता की लकीरों पर सिमित हो कर चलना सिखाते हैं ताकि तथा कथित जैसा सभ्य बन सकुं लेकिन मैं सभी सीमाएं लांघ निकलता हूँ और चले जाना है मुझे इनकी उम्मीदों से कोशो दूर जहाँ पहुँच न सके कोई भी विचार फिर शून्य में स्वयं शून्य हो जाना है स्वयं के यथार्थ स्वरूप में स्थिर होकर रह जाना है स्वयं के यथार्थ को पहचानना है न विद्वान हूंँ न ही तथाकथित बन जाना है अज्ञानी हूँ यह ज्ञान जानना है मुझे गर्व है अपनी अज्ञानता पर क्योंकि सभ्यसमाज के लोगों को देख कर मेरी आंखे फट जाती हैं उनको नजदीक से सुन कर मैं कांप उठता हूँ उनकी विद्वत्ता के रहते व्यवहार पर अक्सर मेरे होंठ सिल जाते हैं देह में मेरे रक्त जम सा जाता है हाँ मैं उनसे अव्यवस्थित हूँ, असभ्य हूँ, असहज हूँ, अल्हड़ हूंँ लेकिन मैं स्वयं में एक खूबसूरत एहसास हूंँ। मैं बीहड़ सही मुझे मुझमें ही रहने दो, मुझे अपने तरिके से जिने दो क्योंकि मैं इस लिखी हुई कविता की तरह ही हूँ उलझा हुआ, अव्यवस्थित सा, असहज, अत्यंत संवेदनशील, यहाँ भी फूहड़ता नजर आती होगी लेकिन छोड़ो तुम रहने दो, मैं अल्हड़ हूँ छोड़ो मुझे अल्हड़ ही रहने दो। , ।। ©Dhaneshdwivediwriter"

 White  ।।मैं शून्य हो जाना चाहता हूँ।।

ये बांधना चाहते हैं मुझे,
सभ्यता की लकीरों पर 
सिमित हो कर चलना सिखाते हैं 
ताकि तथा कथित जैसा सभ्य बन सकुं
लेकिन मैं सभी सीमाएं लांघ निकलता हूँ 
और चले जाना है मुझे इनकी उम्मीदों से कोशो दूर 
जहाँ  पहुँच न सके कोई भी विचार 
फिर शून्य में स्वयं शून्य हो जाना है
स्वयं के यथार्थ स्वरूप में स्थिर होकर रह जाना है 
स्वयं के यथार्थ को पहचानना है 
न विद्वान हूंँ न ही तथाकथित बन जाना है 
अज्ञानी हूँ यह ज्ञान जानना है 
मुझे गर्व है अपनी अज्ञानता पर
क्योंकि सभ्यसमाज के लोगों को देख कर मेरी आंखे फट जाती हैं 
उनको नजदीक से सुन कर मैं कांप उठता हूँ 
उनकी विद्वत्ता के रहते व्यवहार पर अक्सर मेरे होंठ सिल जाते हैं  
देह में मेरे रक्त जम सा जाता है
हाँ मैं उनसे अव्यवस्थित हूँ, असभ्य हूँ, असहज हूँ,
अल्हड़ हूंँ लेकिन मैं स्वयं में एक खूबसूरत एहसास हूंँ।
मैं बीहड़ सही मुझे मुझमें ही रहने दो,  
मुझे अपने तरिके से जिने दो
क्योंकि मैं इस लिखी हुई कविता की तरह ही हूँ 
उलझा हुआ, अव्यवस्थित सा, असहज, अत्यंत संवेदनशील, 
यहाँ भी फूहड़ता नजर आती होगी
लेकिन छोड़ो तुम रहने दो, मैं अल्हड़ हूँ
छोड़ो मुझे अल्हड़ ही रहने दो।

















,

।।

©Dhaneshdwivediwriter

White ।।मैं शून्य हो जाना चाहता हूँ।। ये बांधना चाहते हैं मुझे, सभ्यता की लकीरों पर सिमित हो कर चलना सिखाते हैं ताकि तथा कथित जैसा सभ्य बन सकुं लेकिन मैं सभी सीमाएं लांघ निकलता हूँ और चले जाना है मुझे इनकी उम्मीदों से कोशो दूर जहाँ पहुँच न सके कोई भी विचार फिर शून्य में स्वयं शून्य हो जाना है स्वयं के यथार्थ स्वरूप में स्थिर होकर रह जाना है स्वयं के यथार्थ को पहचानना है न विद्वान हूंँ न ही तथाकथित बन जाना है अज्ञानी हूँ यह ज्ञान जानना है मुझे गर्व है अपनी अज्ञानता पर क्योंकि सभ्यसमाज के लोगों को देख कर मेरी आंखे फट जाती हैं उनको नजदीक से सुन कर मैं कांप उठता हूँ उनकी विद्वत्ता के रहते व्यवहार पर अक्सर मेरे होंठ सिल जाते हैं देह में मेरे रक्त जम सा जाता है हाँ मैं उनसे अव्यवस्थित हूँ, असभ्य हूँ, असहज हूँ, अल्हड़ हूंँ लेकिन मैं स्वयं में एक खूबसूरत एहसास हूंँ। मैं बीहड़ सही मुझे मुझमें ही रहने दो, मुझे अपने तरिके से जिने दो क्योंकि मैं इस लिखी हुई कविता की तरह ही हूँ उलझा हुआ, अव्यवस्थित सा, असहज, अत्यंत संवेदनशील, यहाँ भी फूहड़ता नजर आती होगी लेकिन छोड़ो तुम रहने दो, मैं अल्हड़ हूँ छोड़ो मुझे अल्हड़ ही रहने दो। , ।। ©Dhaneshdwivediwriter

#sad_quotes

People who shared love close

More like this

Trending Topic