Unsplash कभी कभी खुद को समझना
भी कितना कठिन होता है
न सवाल जाते है और न
अंदर से जवाब मिलता है
फिर जब कुछ नहीं होता
तो लगता है जिंदगी अपने
मन की है ही नहीं
और जैसे ही जवाब आना
शुरू होते तब तो पानी
नाव में कश्ती की तरह
सब बहा ले जाती
मन और मन की आंतरिक
क्रीड़ाएं विपरीत परिस्थितियों
के नतमस्तक ही होती है
उन्हें भला कौन ही रोक पाया
है और जो रोकने चला है
वो भी विस्मृत पड़ा है ।
©–Varsha Shukla
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