हाल कुछ इस तरह की हैं प्रकृती के, की मुह छुपाये बि | हिंदी शायरी

"हाल कुछ इस तरह की हैं प्रकृती के, की मुह छुपाये बिन बाहर भी निकल नही सकते... poem's by omkar"

 हाल कुछ इस तरह की हैं प्रकृती के,
की मुह छुपाये बिन बाहर भी निकल नही सकते...



poem's by omkar

हाल कुछ इस तरह की हैं प्रकृती के, की मुह छुपाये बिन बाहर भी निकल नही सकते... poem's by omkar

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