محفل बहुत मजबूर हो कर मैंने तुझे छोड़ा तू नहीं जा | हिंदी शायरी

"محفل बहुत मजबूर हो कर मैंने तुझे छोड़ा तू नहीं जानता मैंने तेरे लिए क्या-क्या छोड़ा, एक तो छोड़ा मैंने जीने का ख्वाब अपना फिर आंख बन्द की और सांसों की तलब को छोड़ा।। ढ ©Safarsukoonka"

 محفل बहुत मजबूर हो कर मैंने तुझे छोड़ा 
तू नहीं जानता मैंने तेरे लिए क्या-क्या छोड़ा,
एक तो छोड़ा मैंने जीने का ख्वाब अपना 
फिर आंख बन्द की और सांसों की तलब को छोड़ा।।








ढ

©Safarsukoonka

محفل बहुत मजबूर हो कर मैंने तुझे छोड़ा तू नहीं जानता मैंने तेरे लिए क्या-क्या छोड़ा, एक तो छोड़ा मैंने जीने का ख्वाब अपना फिर आंख बन्द की और सांसों की तलब को छोड़ा।। ढ ©Safarsukoonka

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