लेखनी हाथ ना आती गर तो
जीवन का आधार ना जाने क्या होता
करुण करुनता के सागर में
माझी तेरा पतवार ना जाने क्या होता
अग्नि धधकती तरुणाई की गाथा
वीर तेरा विस्तार ना जाने क्या होता
मधुर प्रेयसी के सारे उपमान गीत
यौवन तेरा शृंगार ना जाने क्या होता
प्रेम जोग की स्याही विरही रातें
विरहन तेरा चीत्कार ना जाने क्या होता
मानस में होता हास्य व्यंग्य की बातें
ठहाकों का संसार ना जाने क्या होता
नश्वर जग का अमर प्रेम मात्सल्य भाव
पाँव पैजनियां का झंकार ना जाने क्या होता
निर्गुण के गुण गुनता राग फ़कीरी
भव सागर का निस्तार ना जाने क्या होता
लेखनी हाथ ना आती गर तो
जीवन का आधार ना जाने क्या होता
©Brijendra Dubey 'Bawra,
कविता महात्म्य ☝️☝️☝️
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