न दिखता हैं, न दिखाता हैं
प्रेम उसका पारदर्शी होकर भी
अपारदर्शी होता हैं।
जिस मर्द का संपूर्ण परिश्रम,
संपूर्ण पूंजी, संपूर्ण जीवन
संपूर्ण क्षण, संपूर्ण काया
भी उसकी नही होती
न जाने क्यों उसके हिस्से
कभी प्रेम का भंडार नही आता।
वो पूर्ण करता हैं प्रेम का हर अंश
औरत के ममत्व पर लिखी कविताओं में
छलक रही ,हर उस बात पर,
जिसकी वजह महज वो पुरुष हैं।
वो पूर्ण करता हैं प्रेम
उसके बच्चे के चेहरे पर आई
एक तनिक मुस्कान से,
उसके आंगन में चारों ओर खुशियों के
माहौल से,
उसके घर आने पर खिल रही
चारों ओर महक रहे उस सौंदर्य से।
पुरुष पूर्ण करता हैं अपना अपूर्ण प्रेम
उसके छोटे से तनिक संसार से।
©Bhawna
#Parchhai