मिटे वो दिल जो तेरे ग़म को ले के चल न सके
वही चिराग़ बुझाये गये जो जल न सके
हम इस लिए नयी दुनिया के साथ चल न सके
कि जैसे रंग यह बदलती है हम बदल न सके
मैं उन चिराग़ों की उम्रे - वफ़ा को रोता हूं
जो एक शब भी मेरे दिल के साथ जल न सके
मैं वो मुसाफ़िर- ग़मगीं हूं जिसके साथ ' वसीम '
खिज़ां के दौर भी कुछ दूर चल के चल न सके
प्रो वसीम बरेलवी
मुसाफ़िर- ग़मगीं = दुखी यात्री
©Aradhana Sharma
#gazal