जिसके लिए इतना कुछ कहते हो क्या वो भी तुमसे कुछ कह | हिंदी शायरी

"जिसके लिए इतना कुछ कहते हो क्या वो भी तुमसे कुछ कहता है! ताबीर नही होते कभी ख्वाब उसके लेकिन, फिर भी दिल मे एक आतिश जलाए रहता है उसकी ख़ातिर अदावतें करके भी सब रायगां रहा, कौन यहाँ कुछ करके फिर गूंगा रहता है, सब अपने करीने से ऐहसान गिनाए हैं उसे, वो भी ख़ामोश रहकर मकतूल सा सहता है, है उसे भी आँसुओं में आमोज़िस की रंग-ओ-बू, देखो कैसे दरिया भी खामोश बहता है, हर सहर मिल जाते हैं रूठे यार उसे, रातों को फिर क़फ़स में वो तन्हा रहता है। -Shekhar"

 जिसके लिए इतना कुछ कहते हो
क्या वो भी तुमसे कुछ कहता है!

ताबीर नही होते कभी ख्वाब उसके लेकिन,
फिर भी दिल मे एक आतिश जलाए रहता है

उसकी ख़ातिर अदावतें करके भी सब रायगां रहा,
कौन यहाँ कुछ करके फिर गूंगा रहता है,

सब अपने करीने से ऐहसान गिनाए हैं उसे,
वो भी ख़ामोश रहकर मकतूल सा सहता है,

है उसे भी आँसुओं में आमोज़िस की रंग-ओ-बू,
देखो कैसे दरिया भी खामोश बहता है,

हर सहर मिल जाते हैं रूठे यार उसे,
रातों को फिर क़फ़स में  वो तन्हा रहता है।
                                 -Shekhar

जिसके लिए इतना कुछ कहते हो क्या वो भी तुमसे कुछ कहता है! ताबीर नही होते कभी ख्वाब उसके लेकिन, फिर भी दिल मे एक आतिश जलाए रहता है उसकी ख़ातिर अदावतें करके भी सब रायगां रहा, कौन यहाँ कुछ करके फिर गूंगा रहता है, सब अपने करीने से ऐहसान गिनाए हैं उसे, वो भी ख़ामोश रहकर मकतूल सा सहता है, है उसे भी आँसुओं में आमोज़िस की रंग-ओ-बू, देखो कैसे दरिया भी खामोश बहता है, हर सहर मिल जाते हैं रूठे यार उसे, रातों को फिर क़फ़स में वो तन्हा रहता है। -Shekhar

कैसे!!
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