प्रेम की दो धारणाएँ प्रचलित हैं समाज में.... पौराण | हिंदी Bhakti

"प्रेम की दो धारणाएँ प्रचलित हैं समाज में.... पौराणिक और नवप्राचीन.. पौराणिकता के अनुसार प्रेम प्रदर्शन का नहीं प्रबंधन का विषय है जबकि नवप्राचीन के अनुसार प्रेम वो भाव है जिसका प्रदर्शन उतना ही पवित्र है जितना कि देवपूजन.. नवप्राचीन मान्यताओं के अनुसार शरदपूर्णिमा के दिन प्रेम का प्रदर्शन प्रेम को पूर्णता प्रदान करता है जैसे अमृतमिष्ठान्न का निर्माण और सेवन आदि.. जबकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन प्रधान सेविका अपने प्रधान सेवक के अतिरिक्त अपने पूर्णसंसार की प्रतिपुष्टि के लिए एक सर्वकालिक आभा का निर्माण करती है जिससे ये संसार पूर्णता को प्राप्त करे अर्थात मन,कर्म और वचन से शुद्धता को प्राप्त हों.. कहते हैं इस दिन प्रधानसेविका कर्म के क्षीर में सामाजिक चावल और पंचमेवा अर्थात (भाव,एहसास,समर्पण,सहृदयता और संकल्प) के मिश्रण में प्रेम की मिठास घोलकर एक अद्भुत अमृतद्रव्य का निर्माण करती है जिसके सेवन मात्र से प्रेम और प्रेममार्ग में आने वाले समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है..जिससे प्रधानसेवक और प्रधानसेविका एक स्वार्गिक समाज का निर्माण करते हैं जिसमें सिर्फ और सिर्फ कर्तव्यपरायणता के लिए ही जगह है..जैसे कृष्ण की मथुरा..!! #अज्ञात ❣️❣️ ©मलंग"

 प्रेम की दो धारणाएँ प्रचलित हैं समाज में.... पौराणिक और नवप्राचीन..
पौराणिकता के अनुसार प्रेम प्रदर्शन का नहीं प्रबंधन का विषय है जबकि नवप्राचीन के अनुसार प्रेम वो भाव है जिसका प्रदर्शन उतना ही पवित्र है जितना कि देवपूजन..

नवप्राचीन मान्यताओं के अनुसार शरदपूर्णिमा के दिन प्रेम का प्रदर्शन प्रेम को पूर्णता प्रदान करता है जैसे अमृतमिष्ठान्न का निर्माण और सेवन आदि..

जबकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन प्रधान सेविका अपने प्रधान सेवक के अतिरिक्त अपने पूर्णसंसार की प्रतिपुष्टि के लिए एक सर्वकालिक आभा का निर्माण करती है जिससे ये संसार पूर्णता को प्राप्त करे अर्थात मन,कर्म और वचन से शुद्धता को प्राप्त हों..

कहते हैं इस दिन प्रधानसेविका कर्म के क्षीर में सामाजिक चावल और पंचमेवा अर्थात (भाव,एहसास,समर्पण,सहृदयता और संकल्प) के मिश्रण में  प्रेम की मिठास घोलकर एक अद्भुत अमृतद्रव्य का निर्माण करती है जिसके सेवन मात्र से प्रेम और प्रेममार्ग में आने वाले समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है..जिससे प्रधानसेवक और प्रधानसेविका एक स्वार्गिक समाज का निर्माण करते हैं 

जिसमें सिर्फ और सिर्फ कर्तव्यपरायणता के लिए ही जगह है..जैसे कृष्ण की मथुरा..!!

#अज्ञात 

❣️❣️

©मलंग

प्रेम की दो धारणाएँ प्रचलित हैं समाज में.... पौराणिक और नवप्राचीन.. पौराणिकता के अनुसार प्रेम प्रदर्शन का नहीं प्रबंधन का विषय है जबकि नवप्राचीन के अनुसार प्रेम वो भाव है जिसका प्रदर्शन उतना ही पवित्र है जितना कि देवपूजन.. नवप्राचीन मान्यताओं के अनुसार शरदपूर्णिमा के दिन प्रेम का प्रदर्शन प्रेम को पूर्णता प्रदान करता है जैसे अमृतमिष्ठान्न का निर्माण और सेवन आदि.. जबकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन प्रधान सेविका अपने प्रधान सेवक के अतिरिक्त अपने पूर्णसंसार की प्रतिपुष्टि के लिए एक सर्वकालिक आभा का निर्माण करती है जिससे ये संसार पूर्णता को प्राप्त करे अर्थात मन,कर्म और वचन से शुद्धता को प्राप्त हों.. कहते हैं इस दिन प्रधानसेविका कर्म के क्षीर में सामाजिक चावल और पंचमेवा अर्थात (भाव,एहसास,समर्पण,सहृदयता और संकल्प) के मिश्रण में प्रेम की मिठास घोलकर एक अद्भुत अमृतद्रव्य का निर्माण करती है जिसके सेवन मात्र से प्रेम और प्रेममार्ग में आने वाले समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है..जिससे प्रधानसेवक और प्रधानसेविका एक स्वार्गिक समाज का निर्माण करते हैं जिसमें सिर्फ और सिर्फ कर्तव्यपरायणता के लिए ही जगह है..जैसे कृष्ण की मथुरा..!! #अज्ञात ❣️❣️ ©मलंग

#Krishna

People who shared love close

More like this

Trending Topic